औकात
लोग मुझे अक्सर कहा करते हैं तुम अपनी औकात में रहो तो उन्ही लोगों में से मुझे कोई बताए क्या है मेरी औकात मुझे शायद आज पता नहीं कौन हूँ मैं पर हाँ आज मैं इस मंच के सहारे लोगों को यह जरूर बता सकता हूँ मेरी पहचान क्या क्या हो सकती है
तो सुनिए..
आज मेरी पहचान एक छोटे बच्चे की है, इसका मतलब ये नहीं मेरी औकात बड़े बनने की नहीं आज मेरी पहचान एक विद्यार्थी की है, इसका मतलब ये नहीं मेरी औकात अध्यापक बनने की नहीं आज मेरी पहचान एक असफल व्यक्ति की है, इसका मतलब ये नहीं मेरी औकात सफल बनने की नहीं आज मेरी पहचान एक सेवक की है, इसका मतलब ये नहीं मेरी औकात स्वामी बनने की नहीं आज मेरी पहचान एक इंसान की है, इसका मतलब ये नहीं मेरी औकात भगवान बनने की नहीं
लोग कहते हैं जिसको जितना मिला है उसी में संतुष्ट रहना चाहिए हमारी मर्यादा या फिर जो चादर मिली है उसी में रहना चाहिए तो आज मैं उनलोगों से पूछता हूँ.. कौन हो तुम? और क्या है तुम्हारी औकात?
तुम्हें किसने हक दिया मेरी मर्यादा बांधने की तुम्हें किसने हक दिया मुझे ये छोटी सी चादर उपहार स्वरूप देने की
अगर तुम किसी संबंध विशेष के सहारे ये चादर उपहार स्वरूप दोगे तो नहीं लूँगा मैं अगर तुम किसी लिंग विशेष के सहारे ये चादर उपहार स्वरूप दोगे तो नहीं लूँगा मैं अगर तुम किसी जाति विशेष के सहारे ये चादर उपहार स्वरूप दोगे तो नहीं लूँगा मैं
क्यूंकि ..
आज मैं सीमित हूँ इसका मतलब यह नहीं मेरी औकात असीमित होने की नहीं ॥
शशि शारदा